भोपाल ।   मध्य प्रदेश कैडर के 2014 बैच के आइएएस अधिकारी वरदमूर्ति मिश्रा का स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) आवेदन स्वीकृत हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पर सहमति दे दी है। मिश्रा एक दशक में दसवें ऐसे अधिकारी हैं, जिनका नौकरी से मोहभंग हुआ है। उनका वीआरएस आवेदन सामान्य प्रशासन विभाग ने मुख्यमंत्री सचिवालय को भेजा था। 17 जनवरी 2022 को ही आइएएस अवार्ड पाने वाले मिश्रा ने नौकरी छोड़ने का कारण नहीं बताया। वे खनिज निगम में प्रबंध संचालक थे। आमतौर पर इस पदस्थापना को अच्छा माना जाता है। मिश्रा ने दो जून की दोपहर वीआरएस आवेदन दिया और तुरंत ही कार्यालय छोड़कर चले गए थे। जबकि शासन ने उन्हें आवेदन की प्रक्रिया पूरी होने तक काम करते रहने को कहा था लेकिन वे तीन महीने का वेतन (करीब साढ़े पांच लाख रुपये) जमा कर चले गए। इससे पहले 1991 बैच के आइएएस प्रमोद अग्रवाल नौकरी छोड़ चुके हैं। कोल इंडिया में सीएमडी के पद पर चयन के बाद उन्होंने वीआरएस ले लिया था। हालांकि उन्हें डीम्ड रिटायरमेंट दिया गया है ताकि उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले सभी लाभ मिल सकें। उनसे पहले 1984 बैच के आइएएस आलोक श्रीवास्तव वीआरएस ले चुके हैं। उन्होंने 20 दिसंबर, 2019 को आवेदन दिया था। वे 16 अप्रैल 2012 से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर थे और जून 2020 में सेवानिवृत्त होने वाले थे। उनसे पहले 1987 बैच की आइएएस गौरी सिंह भी वीआरएस ले चुकी हैं। इसी तरह आइएएस डा. भागीरथ प्रसाद, स्वर्णमाला रावला, प्रवेश शर्मा, रश्मि शुक्ला शर्मा, धीरज माथुर, अजय यादव भी नौकरी छोड़ चुके हैं।

अवसर मिलने पर छोड़ी नौकरी

कई मामलों में देखने को मिला है कि अधिकारी ने नौकरी के बाद के अवसरों को ध्यान में रखकर वीआरएस लिया है। गौरी सिंह को नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली दुबई की एक संस्था ने महानिदेशक नियुक्त किया। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया। ऐसे ही डा. भागीरथ प्रसाद को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया तो उन्होंने भी नौकरी छोड़ दी। बाद में इस पद से भी इस्तीफा देकर वे राजनीति में आ गए भाजपा से सांसद भी रहे।