अहमदाबाद | सूरत में रविवार को आयोजित ‘प्राकृतिक कृषि सम्मेलन’ को वर्चुअल संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि देश का एक वर्ग मानता था कि गाँवों में बदलाव लाना आसान नहीं है, परन्तु डिजिटल इंडिया मिशन की सफलता ने इस मान्यता को चकनाचूर कर दिया है। इसी प्रकार से सूरत ज़िले के गाँवों तथा जागरूक किसानों ने यह साबित कर दिया है कि गाँव सिर्फ परिवर्तन ही नहीं ला सकते है, किन्तु परिवर्तन का नेतृत्व भी कर सकते है। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती यह धरती और गौमाता, पर्यावरण-प्रकृति की सेवा है। उन्होंने इस अवसर पर प्राकृतिक खेती द्वारा ज़मीन की गुणवत्ता, उसकी उत्पादकता तथा सुरक्षा के निमित्त बनने के लिए सभी से आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा हि आज़ादी के अमृत काल में प्राकृतिक कृषि, सस्टेनेबल डेवलपमेंट तथा जीवन शैली सहित बहुविद् मॉडल पर अग्रिम आयोजन किया गया है, जो आगामी समय में बड़े परिवर्तनों का आधार बनेगा। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘सबका साथ-सबका विकास’ की भावना के साथ आज़ादी के अमृत काल में देश की गति-प्रगति का आधार ‘सभी के प्रयत्नों की भावना’ है, जो देश के विकास यात्रा का नेतृत्व कर रहा है। सूरत ज़िला प्रशासन ने सुव्यवस्थित आयोजन द्वारा प्राकृतिक खेती को जन आंदोलन बनाने का बीड़ा उठाया है, जो केवल गुजरात ही नहीं, समग्र देश के लिए रोल मॉडल बनने की क्षमता रखता है। सूरत ज़िले के 693 गाँवों के 556 ग्राम पंचायतों में से कुल 41,700 किसानों ने प्राकृतिक खेती अपनाकर विषमुक्त खेती के नए अध्याय की ओर कदम बढ़ाया है। प्रधानमंत्री ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि हीरा उद्योग से विश्व स्तर पर चमक रहा सूरत अब प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में भी देश को दिशा देगा।
सूरत के जागरूक प्रशासकों, जन प्रतिनिधियों ने गाँव, तहसील तथा ज़िला स्तर पर समितियों का गठन करके रूट लेवल पर माइक्रो प्लानिंग किया है। कृषि विशेषज्ञों तथा प्रशिक्षकों की मदद से लगातार मार्गदर्शन, प्रशिक्षण तथा चरणबद्ध वर्कशोप आयोजित करके गाँव-गाँव तक पहुँचा जा रहा हैं, जिसका परिणाम सब के सामने है। सूरत ने यह साबित कर दिया है कि लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ यदि संकल्प लिया जाए तो सफलता अवश्य मिलेग। इसके लिए प्रधानमंत्री ने सूरत ज़िला प्रशासन को इस सफलता के लिए बधाई भी दी। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि मानव जीवन तथा स्वास्थ्य, समाज और हमारा आहार कृषि व्यवस्था पर आधारित है। भारत सदैव से स्वभाव तथा संस्कृति के द्वारा कृषि आधारित देश रहा है। धरती माता को विषमुक्त तथा गुणवत्तायुक्त रखना हम सभी की ज़िम्मेदारी है। प्राकृतिक खेती करने वाला किसान धरती माता की सेवा कर रहा है। प्रकृति तथा पर्यावरण की सुरक्षा के साथ गौमाता का भी जतन होगा। प्राकृतिक खेती यह खुशहाली के साथ ‘सर्वे भवन्तु सुखीनः’ की भावना को भी साकार करता है। आज समग्र विश्व में शुद्ध खान-पान के विषय पर चर्चा हो रही है, ऐसे में भारत सदियों से इसका नेतृत्व कर रहा है। हमारे शास्त्रों में भी पारंपरिक प्राकृतिक आधारित खेती का अनन्य वर्णन किया गया है। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि विश्व में केमिकल फ्री कृषि उत्पादनों की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। देश में अधिक से अधिक किसान प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक बने, इसके लिए पिछले आठ वर्षों से केंद्र सरकार द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने इस संदर्भ में गुजरात के राज्यपाल की सराहना करते हुए कहा कि आचार्य देवव्रत ने खुद प्राकृतिक खेती करके उसके अद्भुत परिणामों को सामान्य किसानों तक पहुँचाया है। राज्य सरकार के सहयोग तथा राज्यपाल के उमदा प्रयत्नों से प्राकृतिक खेती का अभियान सभी गाँवों तक पहुँच गया है। प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक खेती को ‘नमामि गंगा परियोजना’ के साथ जोड़ा है। प्राकृतिक कृषि उत्पादों के प्रमाणीकरण के लिए एक प्रणाली भी स्थापित की है ताकि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को उच्च मूल्य मिल सके। इससे विदेशो में अच्छे दामों पर कृषि उत्पादों का निर्यात संभव हो पा रहा है। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों, स्वैच्छिक संस्थाएँ को आगे आकर किसानों को किस प्रकार से ताकतवर बनाया जा सकता है, इसके लिए प्रयास करने के लिए अनुरोध भी किया है।