भोपाल । कभी पिता शंकर जी की, तो कभी माता पार्वती की गोद में खेलते बाल गणेश, शेषनाग पर विराजमान गणपति, लाल बाग का राजा और बाहुबली की तरह कंधे पर शिवलिंग को उठाकर ले जाते बलशाली गणेश जी... ऐसी ही विभिन्न थीम्स पर गणेश जी की मूर्तियां लगभग बनकर तैयार हैं। मूर्तियों के रंग-रोगन का काम भी तेजी से चल रहा है, जो दो-तीन दिनों में पूरा हो जाएगा और इसके बाद वस्त्र व गहनों से मूर्तियों को पूर्ण रूप दिया जाएगा। चार फीट से लेकर 15 फीट तक की ये खूबसूरत व भव्य मूर्तियां बना रहे हैं हबीबगंज नाका पहाड़ी दुर्गा मंदिर में सुशीला बाला शिल्पकला संस्था के मूर्तिकार। इसके संचालक मूर्तिकार अनूप कुमार डे बताते हैं, मैं यह काम 40 साल से कर रहा हूं। हमारे यहां 17 कलाकार काम कर रहे हैं। सभी ने मिलकर 4 फीट से लेकर 15 फीट तक की गणेश जी की 140 मूर्तियां तैयार की है। इनकी कीमत चार हजार से लेकर 15 हजार रुपये तक है। इनमें से आधे से ज्यादा आर्डर देकर बनवाई गई हैं। कई कलाकारों ने खुद बनाई हैं, जो लोग पसंद करके बुक कर रखे हैं। ये मूर्तियां बड़ी-बड़ी संस्थाओं व झांकियों के लिए हैं। भोपाल के अलावा हमारी बनाई मूर्तियां विदिशा, छिंदवाड़ा, बिना, शाजापुर, मंदसौर, इंदौर तक जा रही हैं।ये मूर्तियां पूरी तरह इको फ्रेंडली हैं। इन्हें बनाने के लिए गंगा की मिट्टी का इस्तेमाल होता है। इन्हें मूर्तियां बनाने के लिए खासतौर से पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर से मंगवाया गया है। ये मिट्टी तीन प्रकार की होती है। एक होती है बेले मिट्टी, दूसरी होती है एटेल मिट्टी और तीसरी मिट्टी में रेत और घास बराबर मात्रा में मिलाई जाती है। मूर्ति बनाते वक्त सबसे पहले रेत और घास वाली मिट्टी लगाई जाती है, फिर दूसरी परत बेले मिट्टी की होती और आखिर में एटेल मिट्टी की परत लगाते हैं, जो बहुत चिकनी मिट्टी होती है। इसके अलावा इनके रंगने के लिए भी प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि विसर्जन के बाद तालाब, नदी का पानी प्रदूषित न हो।