नई दिल्ली । भारतीय मसालों के बाद अब देश के फार्मा सेक्टर के लिए भी दिक्कतें बढ़ रही हैं। डॉक्टर रेड्डीज लैबोट्रीज, सन फार्मा और अरबिंदो फार्मा जैसी दिग्गज भारतीय फार्मास्युटिकल्स कंपनियां अपनी अलग-अलग दवाओं को अमेरिकी बाजार से वापस ले रही हैं। इनकी मैन्युफैक्चरिंग में खामियां पाई गई हैं। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने इन रिकॉल्स को क्लास-1 और क्लास-2 के रूप में वर्गीकृत किया है। उसने भारत से आयात होने वाली जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता और सुरक्षा के बारे में गंभीर चिंता जताई है। जेनेरिक दवाओं का मतलब किसी ब्रांडेड मेडिसिन के फॉर्मूले के आधार पर दूसरी दवा बनाना, जो काफी सस्ती होती है। भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे निर्माता और निर्यातक है। डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज जावीगटोर के करीब 20,000 डिब्बे वापस मंगा रही है। यह फेनिलकेटोनुरिया वाले मरीजों में हाइपरफेनिलएलनिनमिया के इलाज के लिए इस्तेमाल होती है। देश की सबसे बड़ी जेनेरिक दवा निर्माता सन फार्मा एम्फोटेरिसिन बी लिपोसोम की 11,000 से अधिक शीशियों को वापस ले रहा है। यह इंजेक्शन एंटीफंगल का इलाज करता है। लेकिन अमेरिकी ड्रग रेगुलेटर ने अपनी जांच में पाया कि सन फार्मा के इंजेक्शन की गुणवत्ता सही नहीं है। अरबिंदो फार्मा क्लोराजेपेट डिपोटेशियम टैबलेट की 13,000 से अधिक बॉटल वापस ले रहा है। यह एंटी-एंग्जायटी दवा है यानी इसे तनाव कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अरबिंदो फार्मा की इन गोलियों पर बिंदीदार पीले धब्बे थे, जिसके चलते उसे दवा मंगानी पड़ रही है। वहीं एफडीसी लिमिटेड गड़बड़ कंटेनर की वजह से ग्लूकोमा के इलाज में इस्तेमाल होने वाले आई-ड्रॉप टिमोलोल मैलेट ऑप्थेलमिक सॉल्यूशन की 3,80,000 से अधिक यूनिट को वापस ले रही है। ग्लूकोमा आंखों से जुड़ी समस्या है। इसके मरीज की आंखों में अधिक दबाव होने की वजह से आंख को दिमाग से जोड़ने वाली तंत्रिका क्षतिग्रस्त हो जाती है।