भोपाल। नगर पालिक निगम अधिनियम 1954 की धारा 310 के तहत पुराने भवनों को अति जर्जर और भयप्रद घोषित किया जाता है। नगर निगम की जिम्मेदारी होती है कि ऐसे मकानों को खाली करवाकर यहां रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर विस्थापित किया जाए। लेकिन नगर निगम अधिकारी इन जर्जर भवनों को गिराने की बजाय कार्रवाई के नाम पर कागजी खानापूर्ति करते हैं। इन भवनों में अंतिम पत्र (नोटिस) चस्पा कर खाली करवाना भूल जाते हैं। जबकि शहर में एक हजार से अधिक मकान निगम द्वारा चिह्नित किए गए हैं, जो अति जर्जर अवस्था में हैं और कभी भी गिर सकते हैं।
बता दें कि निगम के आंकड़ों के मुताबिक शहर में खतरनाक इमारतों की तादात एक हजार से भी ज्यादा है। निगम ऐसी 1063 इमारतों को अति जर्जर और खतरनाक मानता है। इन खतरनाक मकानों की सूची निगम ने आठ साल पहले बनाई थी, तब से लगातार हर साल बारिश से पहले निगम इन मकानों के मालिकों को नगर पालिक निगम 1954 की धारा 310 के तहत नोटिस थमाता आ रहा है। लेकिन अब तक इनमें से किसी भी मकान को ढहाने की कार्रवाई निगम ने नहीं की है। जानकारी के अनुसार निगम ने नोटिस जारी करने के बाद किसी भी मकान को तब तक नहीं ढहाया, जब तक कोई हादसा नहीं हुआ।
निगम अफसर बताते हैं कि जर्जर 1063 भवनों में से 90 फीसदी में लोग रहते हैं। इनमें 60 फीसदी राजनीतिक रसूख और 40 फीसदी भवन संपत्ति विवाद के चलते मामला कोर्ट में लंबित होने की वजह से नहीं तोड़े जा सके हैं।
खस्ताहाल इमारतें यूं तो पूरे शहर में हैं, लेकिन इनकी तादाद पुराने शहर में ज्यादा है। यहां ऐसी कई इमारतें हैं जो 100 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। इनमें पीर गेट, जुमेराती, हमीदिया रोड, चौक बाजार, इकबाल मैदान, इमामी गेट, जहांगीराबाद, शाहजहांनाबाद और चांदबड़ इलाके में ऐसी इमारतें जर्जर हालत में खड़ीं हैं, जो बारिश के सीजन में कभी भी भरभराकर ढह सकती हैं। खतरा इसलिए ज्यादा है कि ये इमारतें जिन इलाकों में हैं, वहां हमेशा भीड़भाड़ रहती है।