भोपाल । पिछले एक दशक में जिस तरह वनक्षेत्रों में अतिक्रमण बढ़ा है और वहां निर्माण कार्य हुए हैं उससे वन्यप्राणी अब वनों से निकलकर कंक्रीट के जंगल यानी गांव और शहरों की ओर आ रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि निरंतर वन्यप्राणियों और मनुष्यों में लगातार संघर्ष बढ़ रहा है। देश के सबसे बड़े वनक्षेत्र वाले मप्र में रोजाना किसी न किसी रहवासी क्षेत्र में वन्यप्राणियों के घुसने और लोगों पर हमले की खबरें आ रही हैं। राजधानी भोपाल भी इसमें अछूता नहीं है। शहर किनारे बाघभ्रमण क्षेत्र में हर साल 27 हेक्टेयर की घुसपैठ हो रही है। बीते सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह स्थित साफ नजर आती है। जानकारी के अनुसार 1986 में शहर किनारे वन-बाघभ्रमण क्षेत्र की सीमा तय की गई थी। इसकी सीमा तय करने वाले फॉरेस्ट कंजरवेटर खुद मौजूदा स्थिति और आंकड़ों से हैरान हैं। 1986 में कलियासोत से केरवा, कोलार तक वनक्षेत्र तय करने वाले तत्कालीन सीपीए फॉरेस्ट के कंजरवेटर केसी मल्ल का कहना है कि तब पटवारी को साथ लेकर चूनाभट्टी और कोलार रोड से पहाड़ी की ओर पूरा 7012 हेक्टेयर का वनक्षेत्र उन्होंने नापा था। तब यहां कोई निजी जमीन नहीं थी। पूरी जमीन सीपीए फॉरेस्ट को दी गई और पौधरोपण भी किया गया। कुछ साल बाद उनका ट्रांसफर हो गया। वे फिर 1992-93 में भोपाल लौटे तब यहां कुछ संस्थानों को जमीन देकर अंदर निर्माण करवा दिया गया था।

अब जंगल में बड़े-बड़े संस्थान
अब 36 साल बाद यहां दस बड़े कॉलेज, 40 से अधिक बड़े फार्म हाउस, 70 के करीब बड़े बंगले, 90 से अधिक व्यवसायिक गतिविधियां शुरू हो गईं। इतना ही नहीं, इन सालों में जंगल के अंदर अपनी जमीन की दावेदारी करने वालों की संख्या भी बढ़ गई। 1986 में कलियासोत से केरवा, कोलार तक 7012 हेक्टेयर वनक्षेत्र की नपती की गई थी, लेकिन अब शासन ने 350 हेक्टेयर ही वन घोषित किया है। बीते सालों में वनक्षेत्र में 200 निर्माण हो गए। दरअसल 1992 के बाद वनक्षेत्र में शहरी घुसपैठ ज्यादा बढ़ी है। 90 से अधिक तो व्यवयायिक गतिविधियां हो रहीं हैं, जबकि 18 से अधिक बाघ इस समय इस क्षेत्र में हैं। बाघभ्रमण क्षेत्र के लिए 1986 में सीपीए फॉरेस्ट ने 7012 हेक्टेयर का क्षेत्र नापा था, लेकिन 36 साल बाद शासन इसमें से महज 350 हेक्टेयर को ही वन का दर्जा दे पाया। यहां स्थिति ये है कि वनक्षेत्र दर्जा मिली जमीन के पास राजस्व व निजी जमीनें चिन्हित कर दी गई। अब स्थिति ये है कि वनक्षेत्र में तो वन्यप्राणियों के लिए जगह है उनके बीच निजी व राजस्व वाले प्लॉट हैं, जिन्हें वन नहीं माना है और निर्माण की अनुमतियों के लिए उपयुक्त करार दिया जा रहा।

 सीपीए प्लांटेशन में पहुंचा बाघ
चंदनपुरा नगर वन से बाहर निकला एक बाघ इस समय चंदनपुरा सीपीए प्लांटेशन क्षेत्र में है। इसी रास्ते से नीलबड़ और कोलार की ओर आवाजाही की जाती है। यहां पांच बड़ी कॉलोनियों का निर्माण कर लिया गया। ये जंगल का क्षेत्र है और इससे एक किमी दूरी पर कोलार की ओर दो बड़ी पहाडिय़ां हैं, जिन पर बिल्डर्स ने बड़े प्रोजेक्ट बना रखे हैं। वनक्षेत्र में शहर की घुसपैठ यहीं पर सबसे ज्यादा नजर आ रही है। यहां सीपीए प्लांटेशन के पास ग्रामीण क्षेत्र है। बताया जा रहा है कि यहीं के रहवासियों ने यहां बाघ की मूवमेंट देखा है। नगर वन से निकला एक बाघ सीपीए प्लांटेशन की ओर से कलियासोत नदी की ओर मूवमेंट कर रहा है। वन विभाग के एसडीओ एसएस भदौरिया का कहना है कि बारिश थोड़ी रुके तो कुछ कवायद आगे बढ़े। एक बाघ नगर वन में ही है। कोलार की अमरनाथ कॉलोनी से सीपीए प्लांटेशन और यहां से कलियासोत मार्ग से नीलबड़ की ओर वाले रास्ते तक बाघ का भ्रमण हो रहा है। अमरनाथ कॉलोनी से लेकर दानिश हिल्स, साईं हिल्स, वाल्मी समेत पांच बड़ी कॉलोनियां सीपीए प्लांटेशन तक है और लोग धड़ल्ले से आवाजाही के लिए इस रास्ते का उपयोग करते हैं। पूर्व कंजरवेटर सीपीए फॉरेस्ट केसी मल्ल का कहना है कि शहर किनारे इस वनक्षेत्र को मैंने खुद नापा था। तब यहां कोई गतिविधि नहीं थी। अब बड़ा दुख होता है। वन में जिस तरह से बड़े निर्माण, सड़कें, व्यवसायिक गतिविधियां हो गई, उससे मन चिंतित हो जाता है। यहां वन्य प्राणियों की भरमार है। मैं समझ नहीं पा रहा कि ये वन्यप्राणाी इतनी घुसपैठ के बावजूद इतने शांत क्यों हैं? ईश्वर न करे, यदि वन्य प्राणियों ने एक बार जंगल की इस घुसपैठ वाले क्षेत्र में आवाजाही शुरू की तो फिर बहुत दिक्कत बढ़ेगी।