भोपाल ।  फिल्म अभिनेता गोविंदा का कहना है कि पिछले साल मेरे पास फिल्म निर्माताओं के कई प्रपोजल आए, लेकिन काम मेरे मन के मुताबिक नहीं था, इसलिए मैंने मना कर दिया। दरअसल दर्शकों के बीच मेरी छवि अभी भी नंबर वन की है, जबकि फिल्म निर्माता मुझे साइड हीरो के रूप में छोटे-छोटे रोल दे रहे थे, इसलिए मैंने फिल्में नहीं की। मैं दर्शकों के हिसाब से चलना चाहता हूं न कि इंडस्ट्री के हिसाब से। यही वजह है कि आज मेरे पास काम नहीं है, जबकि मैं काम करना चाहता हूं। एक धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने भोपाल आए गोविंदा ने कहा जहां फिल्मों के बदले ट्रेंड के बारे में चर्चा की वहीं, अपनी पीड़ा भी सामने रखी। वर्तमान में लगातार फ्लाप हो रहीं हिंदी फिल्मों को लेकर उनका कहना था कि विषय का चयन, प्रस्तुति और लोगों की विचारधारा में आए बदलाव के कारण ऐसा हो रहा है। पहले इंडस्ट्री में जो माहौल निर्माण किया गया था, उसमें असहजता तो थी, मैंने भी 167 फिल्में की हैं और यह असहजता महसूस की है। आर्ट कल्चर में प्रेम मूल रहा है, उसे पकड़कर चलेंगे तो ऐसा नहीं होगा। साउथ की फिल्में भारतीयता को लेकर चल रही हैं। यही वजह कि हिंदी का दर्शक भी उन्हें पसंद कर रहा है। मेरी माताजी निर्मला देवीजी ने जब अपनी पहली फिल्म की थी 'शारदा" तब उन्होंने मुझे समझाया था कि तुम कितने भी बड़े बन जाओ और अपना व्यक्तित्व लेकर किसी मंच पर खड़े होकर गलत बात करोगे तो तुम्हारी गलत बात नहीं स्वीकारी जाएगी। वो विशेषता तुम में नहीं है। पब्लिक नीयत पकड़ लेती है। ठीक ऐसा ही बालीवुड के साथ हो रहा है। वर्तमान दौर में अपने धर्म, अपनी नींव को पकड़कर चलने वाले ही चलेंगे। मैं खुद अपनी फिल्मों का इंतजार कर रहा हूं: इंटरनेट मीडिया के माध्यम से फिल्मों के बायकाट को लेकर उनका कहना था कि यह क्रिया की प्रतिक्रिया है। लोगों में नाराजगी स्वाभाविक रूप से नहीं आई है, यह जगाई गई है। उन्हें उकसाया गया है। यदि कुछ गलत नहीं हुआ होता तो ऐसा नहीं होता। मुझसे लोग कहते हैं कि पहले जो आपकी फिल्में आती थीं, वो अलग तरह की होती थीं। उनमें गाने होते थे, डांस, एक्शन और रोमांस होता था, हम उसे मिस कर रहे हैं। लेकिन मैं क्या करूं मुझे कोई मंच मिला नहीं तो मैंने अपना गोविंदा रायल चैनल शुरू कर दिया है। इच्छा नहीं थी पर करना पड़ा। अब इसी के माध्यम से दर्शकों के बीच पहुंच रहा हूं। लोग मुझे उकसाते भी हैं, लेकिन मैं बहुत स्ट्रगल करके नीचे से ऊपर आया हूं। इसलिए मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता पर दर्शक अभी मुझे पुरानी छवि में देखना चाहते है। संतों ने दिया था नाम: गोविंदा ने बताया कि मेरा असली नाम गोविंद था, जबकि गोविंदा दक्षिण भारत का नाम है। जब मैं फिल्म इंस्टड्री में आया तो मेरे सीनियर और साधु-संतों ने कहा कि तुम गोविंद नाम से फिल्मी दुनिया में सफल नहीं हो पाओगे नाम में संशोधन कर लो। बस फिर क्या था गोविंदा बनने के बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर उनका कहना था कि यह पर्व बच्चों को आगे बढ़ने की प्रेरण्ाा देता है। दही हांडी हमें बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ संघषर््ा करके आगे बढ़ना सिखाती है ।