भगवान की उपासना करते समय न चाहते हुए भी कुछ गलतियां हो जाती हैं या यूं कहा जाए कि ध्यान न देने से कुछ लापरवाही हो जाती है जिसके कारण ईश्वर का निरादर हो जाता है.

प्रार्थना करने के पहले देवताओं का आवाहन किया जाता है, उनके आने के बाद उचित आसन, चरण धोने आदि करने के बाद ही प्रार्थना की जाती है. सीधे प्रार्थना करना उचित नहीं होता है. घर के पूजास्थल में जो भगवान विराजित हैं, वह केवल मूर्ति मात्र नहीं हैं बल्कि सजीव हैं हम लोग उसी भाव से उनकी उपासना करते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हम अपनी सुविधानुसार कभी संवेदनशील हो जाते हैं तो कभी संवेदनशून्य.

पूजा स्थल को रखें साफ, मूर्तियों को करें सुसज्जित
जिस तरह मंदिरोँ में नित्य प्रति सफाई होती है, ठीक उसी तरह घर के पूजास्थल की साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए. कई बार देखा जाता है कि पूजाघर में धूल जमी हुई है, पुराने फूल रखे हुए हैं. यह बात ठीक नहीं है. पूजास्थल है तो उसकी नित्य प्रति सफाई होनी चाहिए, भले ही आप बहुत अधिक व्यस्त हों. पूजा स्थल में जो धातु की मूर्तियां हैं, उनको नित्य स्नान कराने, वस्त्र पहनाने चंदन तथा पुष्प आदि अर्पित करने का नियम होना चाहिए, जैसा रोज हम लोग अपने लिए करते हैं.

लोग एक गलती करते हैं, स्नान करने के बाद कपड़े पहनने के साथ-साथ मंत्र जाप या पाठ आदि करने लगते हैं. यह ठीक नहीं है. पूजास्थल में जाने पर सबसे पहले अपने प्रभु को सुसज्जित करना है, धातु की मूर्ति के स्थान पर यदि पत्थर की मूर्ति या फोटो है तो सबसे पहले एक दिन पहले लगाए गए टीके को हल्के गीले कपड़े से साफ करें, फिर नया तिलक लगाएं पुराने पुष्प हटा कर नए पुष्प चढाएं, दीपक जलाएं तब उपासना प्रारंभ करने की स्थिति बनेगी.

सिर पर कपड़ा अवश्य रखें
सिर पर कपड़ा रखने को कुछ लोग फिजूल मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है, सिर पर रुमाल, टोपी या साफा पहनना तथा स्त्रियों द्वारा पल्लू रखना दूसरों को सम्मान देने का प्रतीक है. ऐसा करके हम भगवान के प्रति अपना आदर भाव दिखाते हैं.

पूरे घर में न रखें भगवान की फोटो
घर के हर कमरे में भगवान की फोटो रखना भी बहुत अच्छी बात नहीं है. किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि आप बहुत बड़े भक्त हैं. ऐसा नहीं है कि आप घर में जितनी ज्यादा भगवान की फोटो रख लेंगे, भगवान उतनी ही जल्दी प्रसन्न हो जाएंगे. भगवान का चित्र या मूर्ति रखने का अर्थ है कि आपने बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ली है. उनके आदर सत्कार में कोई चूक नहीं होनी चाहिए. मूर्तियों को डेकोरेशन की वस्तु न बनाएं, भक्ति भगवान बहुत आंतरिक विषय है. भगवान डेकोरेशन की नहीं डिवोशन की चीज हैं.