भोपाल । मप्र के निकाय चुनाव में भाजपा के मेयर प्रत्याशियों के  जीते हुए वोटों में पिछले चुनाव की तुलना में इस बार करीब आधा अंतर रहा है। पिछली बार हुए चुनाव में सभी 16 नगर निगमों में उसे साढ़े सात लाख वोटों के फासले पर जीत मिली थी, जबकि इस चुनाव में उसके 9 मेयर प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार से करीब साढ़े तीन लाख वोटों का अंतर रखते हुए चुनाव जीत सके हैं। इतना ही नहीं, इस चुनाव में उसके दो उम्मीदवार उज्जैन में 736 और बुरहानपुर में 542 वोटों के अंतर से जीते हैं, जो पिछले चुनाव में खंडवा से हुई सबसे छोटी जीत 3,477 से कई गुना कम रही है। पिछले चुनाव में अकेले इंदौर में ही उसका प्रत्याशी दो लाख से ज्यादा वोट से जीत गया था, जबकि इस बार कहीं भी इतनी बड़ी जीत नहीं हुई।
निकाय चुनाव में विंध्य-महाकौशल में तीसरी शक्ति के सूर्योदय के संकेत से कांग्रेस-भाजपा में बेचैनी है। महाकौशल और विंध्य क्षेत्र से आए नतीजों ने दोनों दलों की नींद उड़ा दी है। प्रेक्षक इसे समाजवादी राजनीति के गढ़ रहे क्षेत्र में तीसरी ताकत के सूर्योदय का संकेत मान रहे हैं तो अंदरखाने से आ रहे संकेत बता रहे हैं कि जीत के जश्न के बीच आप, ओवैसी की पार्टी और ताकतवर बाहुबलियों से मिलने वाली चुनौती से निपटने के लिए दोनों दल रणनीतिक तैयारी में भी जुटे हुए हैं। भाजपा इस इलाके की तीन में से मेयर की दो सीट हार गई है, जबकि कांग्रेस पहली बार रीवा में अपने बूते उभरी है। भाजपा ने मप्र के तीन क्षेत्रों विंध्य, महाकौशल और ग्वालियर-चंबल के विधायकों को नतीजों पर आकलन के साथ चर्चा के लिए भोपाल बुलाया है, जबकि कांग्रेस की चिंता विंध्य और महाकौशल को लेकर है। अगर यहां तीसरी शक्ति सिर उठाती है तो जाहिर है इसका उसे ही नुकसान अधिक होगा, क्योंकि मुकाबले बहुकोणीय हो जाएंगे। कांग्रेस ने इस इलाके के पांच प्रमुख नेताओं और पिछड़ी तथा आदिवासी जाति के विधायकों के साथ इस माह के अंत में मंथन करने का निश्चय किया है।