नई दिल्ली । एनडीए के राष्ट्रपति पद के दावेदार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का उद्धव ठाकरे का फैसला कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए बड़ा झटका है। यशवंत सिन्हा को साझा उम्मीदवार बनाकर राजग के सामने मजबूती से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की विपक्ष की मुहिम कमजोर पड़ती दिख रही है। शिवसेना से पहले भी राजग से बाहर के कई दल द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर चुके हैं। सबसे पहले बीजद प्रमुख और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने मुर्मू को अपना समर्थन दिया। इसके बाद शिरोमणि अकाली दल, वाईएसआर कांग्रेस, बसपा, जदएस, अन्नाद्रमुक और तेदेपा ने भी मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। माना जाता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा भी द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान करेगा। आम आदमी पार्टी ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
शिवसेना की ओर से मुर्मू के समर्थन की घोषणा के बाद कांग्रेस ने तंज कसा है। महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बालासाहेब थोराट ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने के शिवसेना के रुख पर चिंता व्यक्त की है। थोराट ने ट्वीट करके शिवसेना के वैचारिक दलबदल पर सवाल उठाया है, जो अभी भी महाविकास आघाड़ी का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव एक वैचारिक लड़ाई है। ये लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए चल रहा संघर्ष है।
ये महिला बनाम पुरुष या आदिवासी बनाम गैर-आदिवासियों का सवाल नहीं है। वहां सभी जो संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के पक्ष में हैं, यशवंत सिन्हा का समर्थन कर रहे हैं। शिवसेना ने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन क्यों किया? उन्होंने इसके कुछ कारण बताए, लेकिन इसके पीछे शिवसेना नेतृत्व की वास्तविक भूमिका के बारे में कुछ नहीं कहा। माना जा रहा था कि विधायक दल में विभाजन के बाद ठाकरे सांसदों का आग्रह ठुकरा कर कोई नई मुसीबत नहीं मोल लेना चाहते हैं। मंगलवार को उद्धव ने जहां द्रौपदी मुमरू के लिए समर्थन की घोषणा की, वहीं यह सफाई भी दे डाली कि प्रसार माध्यमों द्वारा फैलाई गई इस बात में कोई सच्चाई नहीं है कि यह समर्थन किसी दबाव में दिया जा रहा है। हाल ही में 40 विधायकों द्वारा अलग गुट बना लेने के बाद शिवसेना संकट के दौर से गुजर रही है। उद्धव ठाकरे से अलग हुए विधायकों का मानना था कि वे जिस भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़े, उसके साथ ही सरकार बनाना पार्टी के हित में है। शिवसेना के ज्यादातर लोकसभा सदस्यों का मानना है कि भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ना उनके लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। इसलिए वे पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पर राष्ट्रपति चुनाव में राजग उम्मीदवार को समर्थन देने के लिए दबाव बना रहे थे।