आरटीओ ऑफिस में होने वाली अवैध वसूली का सीधा ठेका आयुक्त की झोली में जाना बता रहे हैं। विभाग के जानकार। सूत्र बता रहे हैं कि अपने इलाज की खातिर विभाग को बीमारी की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया है।
 

ग्वालियर। हाय री सरकार ये क्या कर दिया। करोड़ों की अवैध वसूली को क्यों बंद करवा दिया अब क्या होगा उन प्रभावशील लोगों का जो इस वसूली से अपने आर्थिक हितों की पूर्ति कर रहे थे। प्रदेश के प्रतिष्ठ समाचार पत्र ने अपनी रिपोर्टिंग में यह पाया कि मात्र 16 बेरियरों से 230 करोड़ रूपये की अवैध वसूली की जा रही थी। यदि यह सच माना जाए तो प्रदेश में 40 से अधिक छोटी बड़ी परिवहन जांच चौकिंया थी। फिर तो इस अवैध वसूली का आंकड़ा महावारी लगभग 500 करोड़ से भी अधिक का रहा होगा। जिससे प्रतिमाह तकरीबन सभी जानकार जीव आत्मा फिर चाहे वह राजनेतिक या जांच एजेंसीयों की चौखटें या फिर मीडिया हाउस लगभग सभी को इसके अंश पहंुचने की बातें सामने आयी हैं। आखिर ऐसे कौन से कारण रहे जिससे सरकार को इन चेकपोस्टों की तालाबंदी करने को मजबूर होना पड़ा। जबकि सूत्र बता रहे हैं कि एक बहुत बड़ा अंश सत्तारूढ़ पार्टी को भी वर्षो से पहुंचाया जाता रहा है। तो फिर क्यों. चैकपोस्टों पर किस बात की तालाबंदी? अगर सरकार भ्रष्टाचार को बंद कराना ही चाहती है तो लगभग सभी विभागों पर सरकार को तालाबंदी करना होगी। क्योंकि तकरीबन सभी अवैध वसूली में लगे है। फिर चाहें मामला आबकारी, ग्रह, वाणिज्य, राजस्व या फिर आरटीओ कार्यालय। ये  सभी विभाग जनता से अवैध वसूली कर रहे हैं। अंतर सिर्फ इतना कि यहां अवैध वसूली के आयाम बदले हुए हैं।

क्या दिल्ली दरबार के दबाव में है प्रदेश सरकार ?
हमारे वर्तमान मुख्यमंत्री बहुत भावुक और ईश्वरवादी दिखाई पड़ते हैं वे एक ईमानदार और भ्रष्टाचार रहित प्रदेश की स्थापना करने की मंशा में दिखाई दे रहें है जो एक बहुत बड़ा सहासिक कदम है। क्योंकि इस करोड़ों की अवैध वसूली से जिन जीव आत्माओं का जीवन यापन हो रहा था वे कहीं न कहीं दुखी मन से प्रदेश मुखिया के प्रति नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते आने वाले समय में अवश्य दिखाई देंगे। क्योंकि इन जीव आत्तमाओं का संपर्क और प्रेम दिल्ली दरबार के दरबारियों से भी बताया जा रहा है।

 

500 करोड़ के बंदरबांट में शामिल कौन ?
सूत्रों के मुताबिक परिवहन विभाग की चैकपोस्टों से 500 करोड़ रूपये से अधिक की अवैध वसूली प्रतिमाह होने के आंकड़े सामने आए हैं। परन्तु ऐसा क्या हुआ कि प्रदेश के मुखिया को इन चैकपोस्टों पर तालाबंदी की नौबत आन पड़ी। इस विषय की जांच परख में सामने तथ्य आये हैं कि परिवहन विभाग की इन चैकपोस्टों से माहवारी तकरीबन अवैध वसूली 500 करोड़ से अधिक जरूर बताई जा रही है लेकिन परिवहन विभाग के खाते में मात्र 100 करोड़ रूपये वार्षिक पहुंच रहा है। जो कि एक संबेदनशील पहलू है। कि मात्र 100 करोड़ के वर्षिक राजस्व के लिये छः हजार करोड़ की अवैध वसूली का दाग परिवहन विभाग अपने दामन पर क्यों लगने दे। शेष आगे.... किसका कितना हिस्सा रहता है इन 500 करोड़ में ?